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{{KKRachna
|रचनाकार=रमेश रंजक
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|संग्रह=दरिया का पानी / रमेश रंजक
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<poem>
पुकार उसको न छू पाएगी सफ़र के लिए ।
तमाम रास्ते जाते हैं जिसके घर के लिए ।।

क़सम दिला के मुझे रास्ते में छोड़ चला ।
वो, जिसने मुझको तलाशा था इक डगर के लिए ।।

न लूँगा साथ उसे आग बेच दी जिसने ।
बिगाड़ देगा सफ़र मेरा उम्र भर के लिए ।।

मैं किसके सामने लम्बे सफ़र की बात करूँ ।
यहाँ तो लोग मरे जा रहे हैं ज़र के लिए ।।

जहाँ लगाव, वहीं आग, वहीं है ईमाँ ।
जहाँ चिराग़, वहीं ज़िन्दगी सहर के लिए ।।
</poem>
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