1,215 bytes added,
09:52, 9 सितम्बर 2021 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=रमेश रंजक
|अनुवादक=
|संग्रह=दरिया का पानी / रमेश रंजक
}}
{{KKCatGhazal}}
<poem>
पुकार उसको न छू पाएगी सफ़र के लिए ।
तमाम रास्ते जाते हैं जिसके घर के लिए ।।
क़सम दिला के मुझे रास्ते में छोड़ चला ।
वो, जिसने मुझको तलाशा था इक डगर के लिए ।।
न लूँगा साथ उसे आग बेच दी जिसने ।
बिगाड़ देगा सफ़र मेरा उम्र भर के लिए ।।
मैं किसके सामने लम्बे सफ़र की बात करूँ ।
यहाँ तो लोग मरे जा रहे हैं ज़र के लिए ।।
जहाँ लगाव, वहीं आग, वहीं है ईमाँ ।
जहाँ चिराग़, वहीं ज़िन्दगी सहर के लिए ।।
</poem>