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{{KKRachna
|रचनाकार=यशोधरा रायचौधरी
|अनुवादक=मीता दास
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<poem>
विषय !
विषय ! तुम धकियाते बहुत हो, विषय !
विषय ! तुम सरल रेखा में आओ ना !

तुम आते हो टेढ़े-मेढ़े चोर रास्तों से
तुम आते हो दूसरे कई रास्तों से, इधर से-उधर से
पहाड़ी झरनों की तरह टपक पड़ते हो मेरे कृतार्थ दिनों से
मेरे शून्य गर्भ से खाली कुएँ की तरह प्रतिदिन ।

विषय ! ओ विषय ! तुम मेरे जीवन के विष से बाहर आए हो
तुम कसैलापन लिए बह गए हो इधर-उधर
इधर मैं जो दिल से मृत, मुर्दे के सामान सोई पड़ी हूँ
और मेरे तकिये पर तुम लार की तरह झरे हुए हो ।

विषय ! ओ विषय ! अगर तुम रोज़ नही आते, फिर भी,
विषय ! ओ विषय ! तुम दीर्घजीवी हो क़रीब बचे रहे,
फिर भी तुम्हे देख नही पाई
स्वर्गीय नदी की तरह, जलहीन, तरंगहीन, प्रायः
अदृश्य धागे की तरह ही हो —
मेरी भ्रमित सी बिखरी कविता ।

'''मूल बांगला से अनुवाद : मीता दास'''
</poem>
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