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11:25, 12 सितम्बर 2021 {{KKGlobal}}
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|रचनाकार=अंशुल आराध्यम
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गुरुकुल खण्डित पड़े, राष्ट्र का यश क्षत-विक्षत है
शस्त्रों के सम्मुख शास्त्रों का गौरव आहत है
चन्द्रगुप्त के राजतिलक का यही मुहूरत है
विष्णुगुप्त चाणक्य तुम्हारी पुनः ज़रूरत है
तक्षशिला की प्राचीरों का मान विखण्डित है
शिक्षित शिष्यों के अन्तस का ज्ञान विखण्डित है
आचार्यों का सारा स्वाभिमान विखण्डित है
गणित, कला, कानून, कर्म, विज्ञान विखण्डित है
यहाँ ज्ञान का मस्तक, धन के द्वारे पर नत है
विष्णुगुप्त चाणक्य तुम्हारी पुनः ज़रूरत है
सबके मन का मगध, हारने को तैयार खड़ा
अर्थव्यवस्था चूर, युवा मन बेरोज़गार खड़ा
गृह-क्लेश से स्वयं सैन्य-बल भी लाचार खड़ा
उधर सिकन्दर हाथों में लेकर तलवार खड़ा
धनानन्द, मद, मान और मदिरा में ही रत है
विष्णुगुप्त चाणक्य तुम्हारी पुनः ज़रूरत है
पुनः प्रतिज्ञा धरो, राष्ट्र का मान बचाने को
पुनः शिखा खोलो, सन्तों के प्राण बचाने को
पुनः जागरण करो, धरा पर ज्ञान बचाने को
चिन्तन, दर्शन, बोध, कला, विज्ञान बचाने को
तुम विचार के धनी, नीति में तुम्हें महारत है
विष्णुगुप्त चाणक्य तुम्हारी पुनः ज़रूरत है
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