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08:23, 17 सितम्बर 2021 {{KKGlobal}}
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|रचनाकार= सुरेन्द्र सुकुमार
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|संग्रह=
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<poem>
ऐसी सी थी वो ऐसी थी
बैठी बैठी सोती थी
मन ही मन रिश्ते बुनती थी
नए नए सपने चुनती थी
आड़ी तिरछी खींच लकीरे
मिटा मिटा के सर धुनती थी
मेरे पैरों की परछाइं पर
सर रख के रोती थी
ऐसी थी वो ऐसी थी
बैठे बैठे सोती थी
अक्सर वृत रख लेती थी
प्यार को मन में सेती थी
आँख उठा कर कभी न देखा
खुद ही नईया खेती थी
बंजर खेतों में मन माफिक
अपनी फसलें बोती थी
ऐसी थी वो ऐसी थी
बैठे बैठे सोती थी
</poem>
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