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हार नहीं मानी / रमेश रंजक

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|संग्रह=दरिया का पानी / रमेश रंजक
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<poem>
पस्त हुआ, ध्वस्त हुआ,
हार नहीं मानी ।

जूझा हूँ — मौसम से
कुरसी के बाज़ से
माँगे दो फूल नहीं
दम्भी ऋतुराज से

पतझड़ में जीया —
देवदारू स्वाभिमानी ।

कितना कुछ टूटा है,
छूटा है राह में
आएगा जो भी, वह
झाँकेगा थाह में

मुझ में ही पाएगा
दीन और दानी ।
</poem>
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