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01:26, 11 अक्टूबर 2021 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=पाब्लो नेरूदा
|अनुवादक=तनुज
|संग्रह=
}}
{{KKCatKavita}}
<poem>
चाहो तो छीन लो
तुम मुझसे ये रोटियाँ,
छीन लो इन हवाओं को,
मगर मत छीनो मुझसे
तुम, मेरी जान,
अपनी यह प्यारी हँसी !
इन गुलाबों को मुझसे
मत करो दूर !
ये कँटीले फूल
जो तुमने तोड़ रखे हैं !
वह पानी जो फूट जाता है
अकस्मात उन्माद से,
तुम्हारे भीतर,
उभरे हुए चाँदी के तमाम तरँग !
मेरे सँघर्ष काफ़ी कठिन हैं,
मैं आता हूँ वापस
हताश और थका हुआ
देखकर कभी न बदलने वाली
इस पृथ्वी को,
मगर जैसे ही तुम्हारी हँसी पाती है
प्रवेश मेरे भीतर,
यह उठती है:
आकाश की तरफ़
मेरी कामना करते हुए,
और खुल जाते हैं तब मेरे लिए
जीवन के सारे बन्द दुर्ग द्वार...
'''तनुज द्वारा अँग्रेज़ी से अनूदित'''
</poem>