1,491 bytes added,
22:17, 12 अक्टूबर 2021 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=यानिस रित्सोस
|अनुवादक=गिरधर राठी
|संग्रह=
}}
{{KKCatKavita}}
<poem>
अब मैं मछली के शिकार पर नहीं जाता, वह कहता है
यहीं, कहवाघर में बैठा, देखता रहता हूँ
खिड़की से — नौजवान मछुआरे
टोकरी उठाए, आते, बैठते, बतियाते, पीते ।
शराब के प्यालों में मछली की कौंध
कुछ बदली सी है । जी करता है उसको बताऊँ
उस विकराल मछली की बात,
जिसकी पीठ में घुपा था तिरछा हार्पून,
बात उसकी लम्बोतरी छाया की,
फैलती चली गई थी जो आसमुद्र ।
पर मैंने बताया नहीं ।
डॉल्फ़िनों का उन्हें कोई मोह ही नहीं ।
और खिड़की के शीशे ये ।
गन्दला गए हैं ये खारे पानी से ।
इनकी सफ़ाई होनी चाहिए ।
'''अँग्रेज़ी से अनुवाद : गिरधर राठी'''
</poem>