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{{KKRachna
|रचनाकार=बेल्ला अख़्मअदूलिना
|अनुवादक=अनिल जनविजय
|संग्रह=
}}
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<poem>
मुझे लगा कि दुश्मन हो मेरे तुम
मुसीबत हो तुम मेरी भारी
लेकिन तुम सिर्फ़ एक झूठे निकले
वो सस्ता खेल तुम्हारा रहा जारी

मानेझ चौक पर बने फव्वारे में
तुम सिक्के फेंक रहे थे
प्यार करती हूँ मैं तुम्हें या नहीं
यह अटकल छेंक रहे थे

अलिक्सान्दर पार्क में ठण्ड बहुत थी
मैं ठण्ड से अकड़ गई थी
बुरी तरह सुन्न हो गए पैर मेरे
और हथेलियाँ जकड़ गई थीं

मफ़लर लपेटकर पैरों में मेरे
हाथ सहलाकर गरमा रहे थे
सोच रहे थे कि मैं भी झूठी हूँ
झूठमूठ मुझे बहला रहे थे

झूठ चक्कर काट रहा था मेरे ऊपर
किसी कौए-सा उड़ रहा था
ले रहा था मुझे अपनी गिरफ़्त में
पंजों से जकड़ रहा था

और जब हम एक-दूसरे से
विदा ले रहे थे अन्तिम
आँखों में सूनापन नहीं था बिल्कुल
कट जाएँगे ये भावी दिन

बेकार है सब कुछ इस जीवन में
हास्यास्पद, भद्दा, और बेहूदा
राह हमारी अलग-अलग है
जीवन है बेहद पेचीदा

'''मूल रूसी भाषा से अनुवाद : अनिल जनविजय'''

'''लीजिए, अब यही कविता मूल रूसी भाषा में पढ़िए'''
Белла Ахмадулина

Я думала, что ты мой враг,
что ты беда моя тяжелая,
а вышло так: ты просто враль,
и вся игра твоя — дешевая.

На площади Манежная
бросал монету в снег.
Загадывал монетой,
люблю я или нет.

И шарфом ноги мне обматывал
там, в Александровском саду,
и руки грел, а все обманывал,
всё думал, что и я солгу.

Кружилось надо мной вранье,
похожее на воронье.

Но вот в последний раз прощаешься.
В глазах ни сине, ни черно.
О, проживешь, не опечалишься,
а мне и вовсе ничего.

Но как же всё напрасно,
но как же всё нелепо!
Тебе идти направо.
Мне идти налево.
</poem>
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