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{{KKRachna
|रचनाकार=बैर्तोल्त ब्रेष्त
|अनुवादक= उज्ज्वल भट्टाचार्य
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<Poem>
बार-बार, जबसे हम बहुतों के साथ मिलकर काम करते हैं
बहुतों की ख़ातिर और लम्बे समय तक बड़ी कोशिशें करते हैं
हमारी जमात से एक शख़्स ग़ायब हो जाता है
और कभी वापस नहीं लौटता ।

वे ताली बजाकर उसका स्वागत करते हैं
वे उसे एक क़ीमती पोशाक पहना देते हैं
वे काफ़ी धन के साथ उसे एक क़रार सौंपते हैं

और दिन-ब-दिन वह बदलता जाता है
अपनी पुरानी कुर्सी पर वह एक मेहमान की तरह बैठता है
लम्बे समय तक काम के लिए उसके पास समय नहीं रहता
मसौदों पर वह अब एतराज़ नहीं करता
(उसमें वक़्त बरबाद होता है)
जल्द ही वह जोश से भर जाता है ।
वह ख़ुशी से चहकता है ।
वह जल्द ही नाराज़ हो जाता है ।
कुछ लमहों तक
अपनी क़ीमती पोशाक पहने वह मुस्कराता रहता है
कभी-कभी
वह कहता है कि उसे धन देनेवालों को वह धोखा देगा
(वे गन्दे लोग हैं)
लेकिन हमें पता है, कि वह अब हमारे साथ नहीं है ।

और एक शख़्स हमारी जमात से ग़ायब हो जाता है
हमें अपने मुश्किल काम में अकेला छोड़ जाता है और
बने-बनाए रास्ते पर आगे बढ़ जाता है ।

'''मूल जर्मन भाषा से अनुवाद : उज्ज्वल भट्टाचार्य'''
</poem>
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