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10:57, 16 नवम्बर 2021 {{KKGlobal}}
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|रचनाकार=रवि सिन्हा
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टकरा गया तो सर से बुरा दिल का हाल था
पत्थर की शक़्ल में कोई नाज़ुक ख़याल था
ऐ फ़लसफ़ी<ref>दार्शनिक (philosopher)</ref> वजूद के,ख़िलक़त<ref>सृष्टि, लोग (creation, people)</ref> के राज़-दाँ
दुनिया जवाब है तो कहो क्या सवाल था
क्या पूछते हो इश्क़ के नुस्ख़े मिरे रक़ीब<ref>प्रतिद्वन्दी (competitor (in love))</ref>
वहशत<ref>पागलपन (frenzy)</ref> मिरी थी और कुछ उनका कमाल था
भूले हुए थे आपको कार-ए-जहाँ के बीच
आई जो शाम दर्द वो फिर से बहाल था
सूरज बुझा-बुझा सा समन्दर भी था उदास
रुख़सत हुआ तो दिन को भी कोई मलाल था
क्यूँ ख़ल्क़ से इस उम्र में बातें हों दिल-फ़रेब
यूँ भी ये मुल्क कब भला हम पे निहाल था
साये में ख़ौफ़-ए-मर्ग<ref>मौत का डर (fear of death)</ref> के जीते चले गए
जीने की चाह से मिरा जीना मुहाल था
जाने को पिछले साल में जाते भी हम कहाँ
जन्नत में भीड़ थी व जहन्नुम वबाल<ref>मुसीबत (calamity)</ref> था
दिन कट रहे हैं आप की रहमत के बावजूद
अब क्यूँ गिला हो, कट गया, अच्छा ये साल था
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