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<poem>
कैसे ब्याहूँ राधे कन्हैया तोरो कारो
घर घर री वो गऊ चरावै, ओढ़णं कंबल कारो ।
छीन झपट दधि खात बिरज में, चलैगो कैसे राधो को गुजारो।
मोरी राधा अजय सुन्दरी, तेरो कन्हैयो कारो ।
कारो कारो मत करो, कान्हों है बिरज को उजियारो ।
नाग नाथ रेती पर डारियो रे, मारी फूँक कृष्ण भयो कारो ।
पीताम्बर की कछनी काछे, मोहन वंशी बारो ।
चन्द्रमुखी भजु बालकृष्ण छिब, कान्हा मिलो त्रिलोकी सूँ न्यारो।
</poem>
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