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21:12, 16 नवम्बर 2021 {{KKGlobal}}
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|रचनाकार=चंद्रसखी
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<poem>
कोई दिन याद करोगे रमता राम अतीत ।
आसन मार गुफा माहि बैठ्यो, याही भजन की रीत ।
असल चन्दन की धूनी रमाय, रंगमहल के बीच ।
पाट पाटम्बर की झोली सिमाद्यूँ, रेशम तनिया बीच ।
मैं तो जाणे थी जोगी संग चलेगा, छाँड़ि गया अधबीच ।
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