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गुमान / परवीन शाकिर

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{{KKCatNazm}}<poem>मैं कच्ची नींद में हूँ <br>और अपने नीमख़्वाबिदा तनफ़्फ़ुस में उतरती <br>चाँदनी की चाप सुनती हूँ <br>गुमाँ है <br>आज भी शायद <br>मेरे माथे पे तेरे लब <br>सितारे सबात से बात करते हैं <br><br/poem>
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