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09:29, 25 नवम्बर 2021 {{KKRachna
|रचनाकार=निर्मल 'नदीम'
|अनुवादक=
|संग्रह=
}}
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<poem>
जुनूँ में, जोश में, जज़्बात में निकला होगा,
चांद को देखने वो रात में निकला होगा।
ज़ख़्म सहला के गया है तू मेरे सीने का,
आज सूरज भी तेरे हाथ में निकला होगा।
उलझे दरियाओं का मतलब तो यही है कि कोई,
ज़ुल्फ़ खोले हुए बरसात में निकला होगा।
जलवा ए इश्क़ ने चेहरे पे सियाही मल दी,
चांद अब जा के ख़राबात में निकला होगा।
इतनी शीरीं है ज़बां उससे संभल कर रहना,
हो न हो पर वो किसी घात में निकला होगा।
जो मेरे लब का सफ़र कर न सकी है अब तक,
मुद्दआ उसका उसी बात में निकला होगा।
नक़्श ए पा पांव के रकबे से बहुत छोटे हैं,
घर से वो तंगी ए हालात में निकला होगा।
ढूंढता होगा मेरे नक़्श ए क़दम की रौनक़,
इश्क़ जब भी रह ए सादात में निकला होगा।
दश्त महका है मेरे दिल का नदीम आ जाओ,
अक्स ज़ख़्मों का ख़यालात में निकला होगा।</poem>