गृह
बेतरतीब
ध्यानसूची
सेटिंग्स
लॉग इन करें
कविता कोश के बारे में
अस्वीकरण
Changes
कहाँ जी पाते हैं ख़ुद से मसाफ़त जिनके मन में है / विनोद प्रकाश गुप्ता 'शलभ'
3 bytes added
,
10:15, 25 नवम्बर 2021
वो बुतख़ाने चले जाएँ , इबादत जिनके मन में है ।
मुहबबत
मुहब्बत
से ही निकला है , मुदावा जब कभी निकला ,
कहाँ हल काेई दे पाते , तिजारत जिनके मन में है ।
द्विजेन्द्र द्विज
Mover, Uploader
4,005
edits