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अब जब मैं मर चुकी हूँ, प्रियतम ! / क्रिस्टीना रोजेटी / अनिल जनविजय
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16:02, 16 जनवरी 2022
जो न उगता है और न अस्त होता है,
संयोग से शायद मैं कभी याद आ जाऊँ तुम्हें,
संयोग से
संयोगवश
ही तुम मुझे भूल जाना।
'''अँग्रेज़ी से अनुवाद : अनिल जनविजय'''
अनिल जनविजय
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