Changes

{{KKCatKavita}}
<poem>
जहाँ सूर्यरहित नदियाँ हैं डुबोतीडुबोतीं
अपनी तरंगों को आँसुओं-सी
वह एक जादुई नींद में सोती है :
उसे मत जगाओ नहीं उस एक अकेले तारे के पीछे,
वह चली आई है बहुत दूर से
ढूँढ़ती हुई वह जगह जहाँ उसकी मनोहर परछाइयाँ हैंउसकी छवि की । 
वह छोड़ आई है गुलाबी सुबह,
वह छोड़ आई है फ़सलों के खेत,
सर्द और सूने साँझ के लिएऔरऔर पानी के झरने झरनों की खातिर
नींद के पार, ज्यों देखती हो घूँघट से,
वह देखती है आकाश को ज़र्द पड़ते हुए,
और सुनती है बुलबुल को
जो गाती है गाते हुए उदासी में । 
विश्रान्ति, विश्रान्ति, एक पूर्ण विश्रान्ति
भौहों और वक्ष से
फिसलते हुए;
उसका रुख़ पश्चिम
की ओर है,
जामुनी भूमि की ओर ।
वह नहीं देख सकती है अन्न को
पकते हुए पहाड़ी पर और मैदान में;
वह नहीं महसूस कर सकती बारिश को
अपने हाथों पर ।
विश्रान्ति, विश्रान्ति, हमेशा के लिए
किसी शैवाल भरे किनारे पर;
विश्रान्ति, विश्रान्ति दिल केअन्तःस्थलमर्म तक
जहाँ वक़्त ठहर जाए :
सो जाओ कि कोई दर्द तुम्हें जगा
न सके;
एक ऐसी रात जिसे में जिसकी कोई सुबह भंगकर सकेहोजहाँ जब तक कि आनन्द में अभिभूत कर लेन हो जाएउसकी पूर्ण शान्ति को
'''अँग्रेज़ी से अनुवाद : सुधा तिवारी'''
Delete, Mover, Protect, Reupload, Uploader
53,612
edits