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|संग्रह=कंगारूओं के देश में / रेखा राजवंशी
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<poem>
कभी-कभी
एकांत का
तकिया बनाती हूँ ।

यादों की
रजाई ओढ़
लोरी गुनगुनाती हूँ ।

ढूंढती हूँ
गुज़रे लम्हे
भूला गीत गाती हूँ ।

सोचती हूँ
जब तुम्हें
जाने क्या छिपाती हूँ ।

जब आँखें
रोटी हैं
बरबस मुस्कुराती हूँ ।

कंगारूओं के
देश में
खुद को समझाती हूँ ।
</poem>