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09:37, 30 जनवरी 2022 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=अलिक्सान्दर सिंकेविच
|अनुवादक=गिरधर राठी
|संग्रह=
}}
{{KKCatKavita}}
<poem>
एक अन्धा सतर्कता के साथ
ठकठकाता हुआ ज़मीन बढ़ा जा रहा था
पटरी के किनारे-किनारे ।
चान्द ने
अति आकार और ताम्रवर्ण चान्द ने
लगा दी है आग बादलों में ।
बग़ल से
रगड़ती हुई एक लड़की गुज़र गई है
जो देगी या तो सुख
या विपदा ...।
उसने हर एक तारे को महसूस करना चाहा
अपनी अँगुलि से
जैसे पढ़ते समय अन्धे महसूसते हैं
अक्षर ।
हम नहीं जानते
कैसी होती है यह इच्छा ।
अक्सर ही हम अन्धे हो जाते हैं
चकाचौन्ध से ।
लेकिन वह तारे को ले सकता है
अपनी हथेलियों में
परखने उसका रूप
गन्ध
भार ।
और वह जान सकता है तमाम चीज़ों के माप
रात और दिन का अन्तर ।
होमर इसी तरह पैदा होते हैं
और लोग ताकते रह जाते हैं ।
'''अँग्रेज़ी से अनुवाद : गिरधर राठी'''
'''लेनिन जन्म शताब्दी पर 1970 में प्रकाशित आलोचना के विशेषांक से'''
</poem>
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