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12:09, 16 फ़रवरी 2022 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार= इन्दिरा प्रसाई
|अनुवादक=
|संग्रह=
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<poem>
देश ढूढँते रहे हम
तुम्हें गँवाने के बाद
गम खाया हुआ दिल लेकर
तुम्हारी आगोश में समाने की
छटपटाती चाहतो को
शरणार्थी शिविरों में
देखकर, छू कर और चुमकर
ओ देश !
तुम्हारे ना होने की
अनुभूति की
सूक्ष्मतम आभास से भी
डर रही हूं मैं ।
</poem>