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दाम्‍पत्‍य - 3 / संतोष अलेक्स

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<poem>
शादी के
अब कई बरस हो गए
बच्‍चे गृह कार्य कर रहे हैं
माँ पूजा पाठ
पहले जैसा प्‍यार नहीं रहा अब
लगता था प्रकृति भी
साथ नहीं दे रही है

समझ रहे थे ज्‍यादा
चाह रहे थे कम

रात को भोजन करते हुए
रोटी में, सब्‍जी में
कमी ढूँढता मैं
बच्‍चों के प्‍लेट से
एकाध लुकमा नीचे गिरने पर
डाँटता उन्‍हें

मेरे हिस्‍से का
बादल, हवा, पानी
अब पहले जैसा नहीं रहा

बादल के पीछे सूरज छिपता है
रोशनी नहीं
उम्‍मीद है पुन:
तालमेल बिठाया जा सकता है
<poem>
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