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<poem>
मंदिर के प्रांगण में
बायीं ओर स्थित पीड़ा पेड़ पर
रंग बिरंगी चिन्दियाँ भरी पड़ी है
कुछेक के रंग निकल गए हैं

चिन्दियों से बतियाने पर
दर्द व पीड़ा की कहानियाँ
सुनाएंगी वे
टहनियों पर चिन्दियाँ बांधकर
सारे दुखों से राहत पाने के विश्‍वास में
चले जाते भक्‍त

शायद सारे दुखों को
अपने अंदर समेटने के कारण
इसका नाम पीड़ा पेड़ पड़ा होगा

चिंदी बेचती अम्‍मा का दुख कौन जाने
मंदिर में अब तक
दो ही लोग पहुँचे हैं
पुजारी और अम्‍मा
<poem>
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