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11:31, 17 अप्रैल 2022 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=मरीने पित्रोस्यान
|अनुवादक=उदयन वाजपेयी
|संग्रह=
}}
{{KKCatKavita}}
<poem>
स्टेशन का हाॅल
शोर से भरा
अनेक आवाजे़ं
कोई मेरा हाथ पकड़ लेता है
शायद मेरी माँ
लेकिन हम अकेले नहीं हैं
पिता निश्चय ही कहीं क़रीब ही हैं
केवल बहन साथ नहीं है
शायद वह अब हर कहीं नहीं है
मुझे याद है
हमारे आसपास के सभी लोग
बतिया रहे हैं,
चल रहे हैं
भाग रहे हैं
शायद ट्रेन क़रीब है
लेकिन हम हिलते तक नहीं
एक जगह खड़े
हम बोलते नहीं
कोई जल्दी नहीं
बहुत समय बाकी है
अभी तो
'''अँग्रेज़ी से अनुवाद : उदयन वाजपेयी'''
</poem>
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