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<poem>
ओ बुलडोजर ? तू कहाँ चला ?
उन्नने ड्यूटी पर भेजा है

क्या कहकर भेजा है?
दर-ओ-दीवार तोड़कर आ ?
जो दिख जाएँ खोपड़े फोड़कर आ ?

अन्धी है क्या ?
दिखता नहीं ?
ड्यूटी बजा रहा हूँ ?
लोकतन्त्र का घण्टा घनघना रहा हूँ ?
कान खोलकर सुन ले
मेरा पिण्डा-जिगरा लोहे का
लौह दरवाज़ों से निकला
मेरा पुर्जा-पुर्जा लोहे का
मेरे मुँह मत लग री, बुढ़िया !
दो जो चार सांसें बची हैं, ले ले
सवाल किया तो यहीं धूल चटा दूँगा
नाम-ओ-निशान मिटा दूँगा ।
</poem>
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