1,370 bytes added,
23:11, 24 अप्रैल 2022 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=बैर्तोल्त ब्रेष्त
|अनुवादक= उज्ज्वल भट्टाचार्य
|संग्रह=
}}
{{KKCatKavita}}
<Poem>
अकेले इनसान की दो आँखें हैं
पार्टी की हज़ारों आँखें हैं ।
पार्टी सात मुल्कों को देखती है
अकेला इनसान सिर्फ़ एक शहर ।
अकेले इनसान के पास नपा-तुला वक़्त है
लेकिन पार्टी के पास है अथाह वक़्त ।
अकेले इनसान को ख़त्म किया जा सकता है
लेकिन पार्टी को ख़त्म नहीं किया जा सकता
क्योंकि वह जनता का अगुआ दस्ता है
और लड़ती है उनकी लड़ाई
विद्वानों के तरीक़ों से, जो बनाए गए हैं
यथार्थ की जानकारी पर ।
'''मूल जर्मन भाषा से अनुवाद : उज्ज्वल भट्टाचार्य'''
</poem>
Delete, Mover, Protect, Reupload, Uploader