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ग़ज़ल 4-6 / विज्ञान व्रत

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<Poem>
'''4'''
हैं वीराने मेरे बाद
सब मैख़ाने मेरे बाद
 
मुझमें और ज़माने थे
देख ज़माने मेरे बाद
 
आये मुझको समझाने
कुछ फ़रज़ाने मेरे बाद
 
मुझको माप न पाएँगे
ये पैमाने मेरे बाद
 
तरसेंगे अब जीने को
दौर पुराने मेरे बाद
'''5'''
मुझ पर कर दो जादू - टोना
एक नज़र ऐसे देखो ना
 
इतने दिन में घर आये हो
घर जैसे कुछ देर रहो ना
 
बादल हो तुम या ख़ुशबू हो
बरसो खुलकर या बिखरो ना
 
ढूँढ़ न पाया ख़ुद को घर में
छान चुका हूँ कोना - कोना
 
तुमसे ख़ुद को वापस क्या लूँ
रक्खो अब तुम ही रख लो ना
'''6'''
उनसे नफ़रत है तो है
ये अदावत है तो है
 
प्यार करता हूँ उन्हें
ये हिमाक़त है तो है
 
मैं बला से कम नहीं
वो क़यामत है तो है
 
आग है चारों तरफ़
घर सलामत है तो है
 
दुश्मनों से भी हमें
है मुहब्बत है तो है
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