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05:47, 18 जून 2022 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=हरबिन्दर सिंह गिल
|अनुवादक=
|संग्रह=बर्लिन की दीवार / हरबिन्दर सिंह गिल
}}
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<poem>
कई सालों से मस्तिष्क में
एक भाव उभर रहा था
कुछ पंक्तियाँ लिख सकूँ
और बता सकूँ, जीवनी पत्थर की,
कि उनका अपना ही एक व्यक्तित्व है
और यह उतना ही ठोस है
जितना की उसका अपना आवरण।
उसके कण-कण में
व्यक्तित्व की एक छाप छुपी है
जिसे अगर मानव समझ सके
तो अपने जीवन का भविष्य
एक ऐसी मजबूत नींव पर
खड़ा कर सकेगा
जिस पर मानवता का आने वाला हर कल
अपने को उतना ही सुरक्षित पायेगा
जितना कि पत्थर का
अपने का स्वयं का अस्तित्व है।
</poem>