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06:45, 18 जून 2022 {{KKGlobal}}
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|रचनाकार=हरबिन्दर सिंह गिल
|अनुवादक=
|संग्रह=बर्लिन की दीवार / हरबिन्दर सिंह गिल
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<poem>
पत्थर निर्जीव नहीं हैं
ये चालें भी चलते हैं।
यदि ऐसा न होता
चौरस की खेल में
इन पत्थरों से
बनी गोटियाँ
दो परिवारों को
जिनमें एक ही
खून का रिश्ता था
कुरुक्षेत्र में वसीट
न ले जाते और
न होता जन्म
महाभारत का
और न बहतीं
नदियाँ खून की।
पत्थरों के इस चपल रूप से
बहुत दूर रहकर जीना चाहिए
वरना ये अमोल जीवन
कौड़ी के भाव
बिक कर रह जाएगा।
तभी तो बर्लिन दीवार के
ये ढ़हते टुकड़े पत्थरों के
दे रहे हैं संदेश हर मानव के लिये
न करो प्रयोग इन पासों का
अपनी आज की राजनितिज्ञ दुनिया में
नहीं तो द्रोपदी की तरह
मानवता भी लुट कर रह जाएगी।
</poem>