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बदलाव / शंख घोष / जयश्री पुरवार
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04:16, 4 जुलाई 2022
अब हम हो गए ‘वे लोग’
हम लोगों को और कोई परेशानी नहीं है
देखो, कैसे अच्छी तरह से बीत रही है
हमारी कीड़े-मकोड़ों जैसी
ज़िन्दगी
।
'''मूल बांग्ला से अनुवाद : जयश्री पुरवार'''
</poem>
अनिल जनविजय
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