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कण्ठ की सुराही को / रामकुमार कृषक
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09:31, 8 जुलाई 2022
लपटों के साँप,
पग–पग
पग-पग
पर आग-सी जरे !
20 मई 1973
</poem>
अनिल जनविजय
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