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|रचनाकार=[[चंद्रप्रकाश देवल]]
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|संग्रह=उडीक पुरांण / चंद्रप्रकाश देवल
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<poem>
उण दिन आपरै उडीक रा फळसा सूं
बारै कढतां
जांण्यौ नीं हौ सपनै ई
के आज इण घड़ी पूठै
नीं औ फळसौ
नीं आ ठौड़
नीं म्हैं-म्हैं वा रैवूंला

म्हैं खुद सूं बारै कठैई गी कोनीं
कांई जांणती
कीकर जांणती
उडीक री कार कित्ती आकरी व्है।
</poem>
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