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मोहरत / चंद्रप्रकाश देवल

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|संग्रह=उडीक पुरांण / चंद्रप्रकाश देवल
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<poem>
उणरै चित्त रै भंवारै
भर्यौ है निरौ सारौ कबाड़
धूड़-धमासौ-संदवाय
भेळमभेळ
ओळूं रा पैल
बारै काढै तौ वा इतियास बण जावै
मांय राखै तौ चूंट-चूंट खावै

वौ आपरी काया रै ‘आतप’ री सीटी
उडीकै
बाफ निकळण रौ हाल नीं आयौ
मोहरत
वौ विजोग री झाळां मांय बैठौ-बैठौ
कायौ व्हैग्यौ।
</poem>
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