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भरोसौ / चंद्रप्रकाश देवल

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|संग्रह=उडीक पुरांण / चंद्रप्रकाश देवल
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<poem>
थूं छोडगी अठै जिणनै
औ भरोसौ वौ इज है
मिजाजण,
जिणरौ ताबीज बांध्या
विघन नैड़ा नीं आवता
गांठ अर गठजोड़ा दिखाई में जावता

औ इज लावारिस भरोसौ
पूजा री बाजती घंटी में बाजै
जद ध्यांन में बैठूं आंख्यां मींच
जगामग जोत रै ज्यूं परगटै
धूप री सुवास में गोट बण उठै
अेक रूप व्है तौ बखांणू
अेक तासीर व्है तौ जांणूं

थारा दूजै नखत वाळा वास में
अेकली दुपारी में पतवांणज्यै
कदैई मंगळसूत्र री टिकली हेट व्हैता
परसेवा में अटकळज्यै
सांम्ही छाती
वो इज भरोसौ आड़ंगियां रै मिस खावतौ लाधैला

अजब बात आ उणरै लेखै
छोड्यां रै इत्ता बरसां पूठै ई नवौ दूजौ नीं आवै
अर नीं औ जिकौ है वौ जावै
औ अपांरै सास्तरां री रूढ़ियां सूं गैरौ
अर कायदां सूं लांठौ निजर आवै।
</poem>
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