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|रचनाकार=[[चंद्रप्रकाश देवल]]
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|संग्रह=उडीक पुरांण / चंद्रप्रकाश देवल
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<poem>
उणरै कठै अरथ री
वौ क्यूं सीखै व्याकरण
वाट-न्हाळण में
भासा नीं
नेहछौ चाहीजै

हां, अबोला उडीकण में कीं घांदौ नीं
पण ‘गाडो’ जैड़ी उडीक में
कोई आवै-जावै तौ है कोनीं
फगत अेक ऊब रौ कादौ
जिकौ उबासी रै आंगै रळै मारगां

आंगळियां रा पेरवा
घिसण रै डर सूं अळगा न्हाट जा
कोल-वाचा घोख-घोख
अेक असेंधाई घर करै उणरै मांय
पछै खुद री ओळख घिसीजण लागै
सगळी चीजां बिरथा व्हैजा
जूंण, समियौ, आंण-जांण
पछै निरग्रंथ व्हियां पैली क्यूं चेतै आवै
डाफाचूक डुसकियां झिल्योड़ा कीं सबद
के पछै वांरी लय
उणनै ठाह ई नीं पड़ै
कद अै जुमला भासा वारै व्हैग्या
उणरी छाती में जमियां जावै
नीं खोड़वण जोग रातां रौ खेंखार
अळखावणी बोपारी वाळा बिसूख्योड़ा दिन
बिना उडीक्यां ई खिरता-आवता पांन
नागड़ी रुतां रा डाकणी चाळा
उणनै ठाह ई नीं पड़ै
के उणरै चायां कीं नीं व्है सकै

उणरै चायां-नीं सूरज ऊगै
नीं बिरखा आवै
नीं आवै सुख, नीं सांयत
कीं नीं व्है

उणरै चायां नीं ढबै जुद्ध
नीं पड़ता ढबै काळ
और तौ और
डाक ई नीं आवै
पछै किणरै भोळै मन कळपावै
भाळ
समिया रौ अरट आठूं पो’र
अड़गड़ावै गड़ल्यां वाळी माळ
निराताळ
गाळ आपरै हठ नै गाळ
वाट मत न्हाळ!
</poem>
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