1,345 bytes added,
10:38, 17 जुलाई 2022 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=[[चंद्रप्रकाश देवल]]
|अनुवादक=
|संग्रह=उडीक पुरांण / चंद्रप्रकाश देवल
}}
{{KKCatKavita}}
{{KKCatRajasthaniRachna}}
<poem>
आपरी गुम्योड़ी सुवास री भाळ में
म्हारै नाक रा फोरणा थारै गांव आया है।
जाणता नीं हा जद अै के बास रै सुंकारो कद लागै। अर कद बदकारो लागै। थारा सांस सेंमूदी बायरी में वभरोळ घोळता हा आपरी हूंस रै पांण। नीं जाणता साफ-साफकै किसी बायारी में भेळणौ है आपरौ आपांण। आ व्ही जांणै बोलविहूणी बतळावण। आंख बायरौ सुपनौ। इण आपाधापी मे कद, कुण, कठै खपणौ। पण -
जाणूं तो बस औ इत्तौ इज जांणूं कै
म्हारै नांव रा आखर थारै नांव समाया है
</poem>