Changes

वसंत / मृत्युंजय कुमार सिंह

1,051 bytes added, 05:59, 20 जुलाई 2022
'{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=मृत्युंजय कुमार सिंह |अनुवादक= |स...' के साथ नया पृष्ठ बनाया
{{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=मृत्युंजय कुमार सिंह
|अनुवादक=
|संग्रह=
}}
{{KKCatKavita}}
<poem>
फिर फूल खिले
फिर बहुरंगी तितलियाँ उड़ीं
फिर काली कोयल,
न जाने किस बात से घायल
कूकी
उमड़ती हवाओं ने
गुमसुम बादलों के कानों में
जैसे बाँसुरी फूँकी.

उन्मत्त हो नचा गगन,
बादलों में उलझी बूंदों का
रिझाता मन
छींटकर टोकरी से किरणें
हवा में लगा इन्द्रधनुष उड़ने,
वसंत से अपने अनुराग का
सारा चित्र गढ़के
प्रकृति झूलती है
धरा का आँचल पकड़ के।
</poem>