Changes

'{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=रामकुमार कृषक |अनुवादक= |संग्रह=स...' के साथ नया पृष्ठ बनाया
{{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=रामकुमार कृषक
|अनुवादक=
|संग्रह=सुर्ख़ियों के स्याह चेहरे / रामकुमार कृषक
}}
{{KKCatNavgeet}}
<poem>
ग़ैरों की दुनिया में
सब्ज़बाग़ अपने हैं
यह भी तो बात कम नहीं !

कितना है भरम
भोर कह देना
खटिया की टूट
टूट सह लेना,

दुनिया की दौलत में
मेहनत है अपनी तो
यह भी सौगात कम नहीं !

कितना है धरम
चुप्प रह जाना
अपने को
अपने पर सह जाना,

दौलत के दर्शन में
दैहिकता अपनी तो
यह भी औक़ात कम नहीं !

कितना है पुन्न
सच्च गह लेना
भर–जीवन
मुश्किल को शह देना,

दर्शन की गंगा में
विष विशेष अपना तो
हम भी सुकरात कम नहीं !

17 जनवरी 1976
</poem>
Delete, Mover, Protect, Reupload, Uploader
53,693
edits