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07:02, 28 अगस्त 2022 {{KKGlobal}}
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|रचनाकार=शशिप्रकाश
|अनुवादक=
|संग्रह=
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<poem>
उसी धारा में हम फिर से नहीं उतर सकते
जिसमें कल तैरते रहे थे I
हर बार जब हम उतरते हैं फिर-फिर
बहती हुई धारा में
तो अतीत की स्मृतियाँ भी साथ होती हैं I
स्मृतियाँ ही परिचय का आभास देती हैं
और नएपन का भी I
बीच में प्रतीक्षा होती है
सपनों से लदी-फदी I
</poem>
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