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अगर तुम युवा हो-4 / शशिप्रकाश

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|संग्रह=कोहेकाफ़ पर संगीत-साधना / शशिप्रकाश
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<poem>
चलना होगा एक बार फिर
बीहड़, कठिन, जोखिम भरी सुदूर यात्रा पर,
पहुँचना होगा उन ध्रुवान्तों तक
जहाँ प्रतीक्षा है हिमशैलों को
आतुर हृदय और सक्रिय विचारों के ताप की ।

भरोसा करना होगा एक बार फिर
विस्तृत और आश्चर्यजनक सागर पर ।

उधर रहस्यमय जंगल के किनारे
निचाट मैदान के अन्धेरे छोर पर
छिटक रही हैं जहाँ नीली चिंगारियाँ
वहाँ जल उठा था कभी कोई हृदय
राहों को रौशन करता हुआ ।

उन राहों को ढूँढ़ निकालना होगा
और आगे ले जाना होगा
विद्रोह से प्रज्वलित हृदय लिए हाथों में
सिर से ऊपर उठाए हुए,
पहुँचना होगा वहाँ तक
जहाँ समय टपकता रहता है
आकाश के अन्धेरे से बूँद-बूँद
तड़ित उजाला बन ।

जहाँ नीली जादुई झील में
प्रतिपल काँपता रहता अरुणकमल एक,
वहाँ पहुँचने के लिए
अब महज़ अभिव्यक्ति के नहीं
विद्रोह के सारे ख़तरे उठाने होंगे,
अगर तुम युवा हो ।
</poem>
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