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|संग्रह=कोहेकाफ़ पर संगीत-साधना / शशिप्रकाश
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<poem>
इतने दिन जिए
सिर्फ़ एक अदद मृत्यु के लिए नहीं
मृत्यु का न होना ही जीना रहा ।

फिर मृत्यु के ऐन सामने भी जीना होगा
मृत्यु के लिए नहीं ।

मृत्यु एक विराम होगी
और आत्मा नहीं,

विचार अशरीरी
उड़कर कहीं और चले जाएँगे,

कहीं और वे जारी रहेंगे
नहीं मरेंगे ।
</poem>
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