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<Poem>
किससे कहे
क्या कहे
सारे ही चुपचाप हैं
ये मंत्री जी की सभा है।
जो तोलेंगे कम,
और बोलेंगे ज़्यादा
इनके प्यादे सारे फर्ज़ी हो गए है,
इधर डामर लगाते हैं
उधर बगीचे बनवाते हैं
सभी एक ही धुन में
चल रहें हैं सब
पर कोने से
कभी कभी
कोई पागल कह ही देता है
ओ मंत्री जी ! इधर भी देख लो
हमारी तरफ़
थोड़ा बहुत।

'''अनुवाद- किशन ‘प्रणय’'''
</Poem>
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