787 bytes added,
12:56, 28 अगस्त 2022 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=जितेन्द्र निर्मोही
|संग्रह=
}}
{{KKCatKavita}}
<Poem>
सामने के डूंगर
पर चढ़ कर देख
बदलियें
नीले पेड़
नदी का चढ़ाव
सड़क
उसके पार
अपना गांव
फिर विचार कर
टटोल तेरी जिंदगानी
वर्षा की फिसलन भरी
जिसे तू
समंदर
समझ रहा है।
'''अनुवाद- किशन ‘प्रणय’'''
</Poem>
Delete, Mover, Reupload, Uploader