3,674 bytes added,
12:57, 28 अगस्त 2022 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=अन्द्रेय वज़निसेंस्की
|अनुवादक=वरयाम सिंह
|संग्रह=
}}
{{KKCatKavita}}
<poem>
अपने नग्न प्रशंसक के साथ
नाच रही है सबके सामने प्रेमिका।
खुश हो ले, ओ शरीर की अश्लीलता
कि आत्मा भी प्रदर्शित करती है अपनी अश्लीलता!
कला जगत में ताकतवर रसोइये-सा
श्रोताओं के सामने कभी-कभी
प्रदर्शित करता है विद्वान वक्ता
अपनी आत्मा की अश्लीलता।
पिकासो में उसे कुछ समझ नहीं आता
स्त्राविन्स्की-अनैतिकता है कानों की।
पेरिस की वेश्या तक को भी
शर्म आ सकती है ऐसे आदमी को देखकर।
जब निर्वस्त्र की जाती है नर्तकी
मुझे शर्म आती है उसे भेजने वालों पर।
जब वह होता है मेरा कोई सहोदर
उसके लिए भी लज्जित होना पड़ता है मुझे ही।
जब मुसीबत में होता है देश
तब भूमिगत कुबेर
हीरे-मोतियों से सजे हुए
अपनी आत्मा की प्रदर्शित करते हैं अश्लीलता।
दूसरों से जब लिखवाये जाते हैं
अपने दोस्त के लिए लेख -
और लेख के अंत में दिया जाता है उसका नाम,
तब अश्लीलता प्रदर्शित करती है आत्मा।
जब न्यायालय में
अभियोग चलता है धोखबाज पति पर
अंतरंग संबंधों का हर विवरण
चाहती है जानना आत्मा की अश्लीलता।
तुम्हें हिम्मत कैसे होती है यह करने की?
कितनी बार हम दोनों कोशिश करते रहे
समाज के आलोक में देखने की उसे
जिसे एक साथ देखने में स्वयं संकोच होता हैं हमें।
नि:संदेह, हमें सोना नहीं चाहिए था एक साथ
पर वह जो दिख रहा है तुममें
उससे अधिक अश्लील हैं वे नंगी आँखें
जो सुराखों में से झाँक रही हैं तुम्हारी तरफ।
निंदा करो स्टेज पर प्रदर्शित नग्न नृत्यों की,
ढक दो वीनसों के पेट!
जो भी हो - पर महत्वपूर्ण है आत्मा
इसलिए कहो, आत्मा की अश्लीलता-मुर्दाबाद!
</poem>