825 bytes added,
12:57, 28 अगस्त 2022 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=जितेन्द्र निर्मोही
|संग्रह=
}}
{{KKCatKavita}}
<Poem>
शहर से गाँव
क्या आयें
और साथ क्या लायें
गोबर के खाद की गंध।
गेरू से पुती दीवारें
आँगन में मंडे माँड़ने
नीम के नीचे बैठें
बूढ़े लोगों का
संवाद
और दूर पनघट से
पानी आती औरतों का
दर्द।
तालाब का घाट,
नदी का किनारा
और ख़ाली बड़े घड़े का सुख।
'''अनुवाद- किशन ‘प्रणय’'''
</Poem>