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<poem>
यह पता नहीं किस तरह हुआ लेकिन हुआ
यही कि आज दोपहर का खाना खाने के बाद
जब मुझे नींद आने लगी तो मुझे लगा कि
मेरा अन्त हो रहा है ।

मेरी नींद टूट गई ।

मैं खिड़की की तरफ़ गया और मैंने सोचा कि
तब यानी कि मृत्यु के बाद खिड़की तक जाना
नहीं होगा और उसके बाहर देख पाना नहीं
होगा । मैंने चेहरे पर पसीना महसूस किया । मैं
ने अपनी अन्त्येष्टि में आने वालों की फ़ेहरिस्त
बनानी शुरू की तो लगा कि किसी भी नाम
को लेकर मेरे मन में निश्चिन्तता नहीं है ।

मैं 12वीं मंज़िल पर रहता हूँ । मैं लिफ़्ट की
तरफ़ गया और मुझे लगा कि मेरी मृत देह
को लिफ़्ट में ले जाना मुश्किल होगा ।

उस दोपहर मरने के बाद के झंझट को देखते
हुए मैंने न मरने का फ़ैसला किया ।
</poem>
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