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अकारण / देवी प्रसाद मिश्र

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<poem>
यह एक अजीब समाज है

तिपहिया में बैठे लोग ड्राइवर की तरफ देखेंगे भी नहीं, अगर तिपहिया का धुरा टूट जाए
और वह कहे कि भाई साहब ! ज़रा सा तिपहिया में हाथ लगा दीजिए और उठा दीजिए ।
यह समाज कृतघ्न समाज कब बन गया
कोई याद नहीं करना चाहता ।

कोई किसी के लिए ज़िम्मेदार नहीं दिखता,
कोई किसी की मदद के लिए नहीं रुकता ।

विद्रोह का कारण उनके पास है,
जिनका घऱ ढहा दिया गया ।
जो भूखे हैं, उनके पास
युद्ध के बड़े कारण हैं ।

नाराज़ होकर इकट्ठा होने के इतने कारण हैं कि
असंगठित होना आपराधिक होना है ।

तमाम कारण हैं जिस समाज के पास वह
अकारण होता जा रहा है ।
</poem>
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