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05:43, 20 सितम्बर 2022 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=अन्द्रेय वज़निसेंस्की
|अनुवादक=विनोद शर्मा
|संग्रह=
}}
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<poem>
मैं गोया हूँ
नंगे मैदान का, कोटरों से आँखों के
फट पड़ने तक
दुश्मन की चोंच से नोचा गया हूँ
मैं दुख हूँ
मैं ज़ुबान हूँ युद्ध की
सन इकतालीस की बर्फ़ पर बिखरे हुए
शहरों के अंगारों की
मैं भूख हूँ
मैं गरदन हूँ,
फाँसी चढ़ी औरत की
घनघनाती रही जिसकी लाश
सूने चौक में घण्टे की तरह
मैं गोया हूँ
ओ प्रतिशोध की बौछार !
उछाल दी है मैंने पश्चिम की ओर
अनाहूत मेहमानों की राख
और कीलों की तरह — ठोंक दिए हैं तारे
आक्रान्त आकाश में
मैं गोया हूँ ।
—
'''अँग्रेज़ी से अनुवाद : विनोद शर्मा'''
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