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|रचनाकार=वास्को पोपा
|अनुवादक=राजेश चन्द्र
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<poem>
कोई काट लेता है किसी और की
एक टाँग, एक बांह या फिर कुछ भी

दबाकर उसे अपने दाँतों में
भागता है उतना तेज़ जितना कि सम्भव हो
छिपा देता है मिट्टी की तहों में उसे

कुछ अन्य जो फैले हैं सब तरफ़
टोह लेते, सूँघते हुए
खोद डालते हैं समूची पृथ्वी को

यदि मिल जाए भाग्य से उन्हें
कोई बांह, कोई टाँग या फिर कुछ भी
तो काटने की बारी अब उनकी होती है

यह खेल ज़ारी रहता है अपनी चुस्त गति से

जब तक कि बची रहती हैं बांहें
जब तक कि बची रहती हैं टाँगें
जब तक कि बचा रहता है कुछ भी ।

'''अँग्रेज़ी से अनुवाद – राजेश चन्द्र'''
</poem>
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