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01:59, 11 अक्टूबर 2022 {{KKGlobal}}
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|रचनाकार=कविता किरण
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'''राजस्थानी सिणगार गीत'''
कोई कैवै गोरी थूं महलां री राणी लागै
कोई कैवै कै कोरा कळसा रो पानी लागै
पहली पहली प्रीत री पहली निसाणी लागै
कोई कैवै कै कोरा कळसा रो पानी लागै।
हर कोई मारग में रोके-टोके आता-जातां
गांव-गळी पिंणघट-चौपाळा पर होवै है बातां
थारी छब तो गोरी जाणी-पिछाणी लागै
कोई कैवै कै कोरा कळसा रो पानी लागै।
लहराती बळखाती नदियां मांय उफणतो पाणी
थारै चढता जोबण सामैं सावण मांगै पाणी
थारै सामनै नुवीं नुवीं भी पुराणी लागै
कोई कैवै कै कोरा कळसा रो पानी लागै।
पल में मुळकै बिजळी पल में बादल ज्यूं घरणावै
कदी लड़ावै नैण कदी या घूंघट में छुप जावै
थोड़ी-थोड़ी भोळी अर थोड़ी सियाणी लागै
कोई कैवै कै कोरा कळसा रो पानी लागै।
थारी एक झलक नै छोरा दिन-रात उडीकै
मुरदा रो मन धड़कन लागै जद थूं सामीं दीखै
ढोला-मारू री फेरू चेती कहाणी लागै
कोई कैवै कै कोरा कळसा रो पानी लागै।</poem>
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