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{{KKRachna
|रचनाकार=पाब्लो नेरूदा
|अनुवादक=अशोक पाण्डे
|संग्रह=बीस प्रेम कविताएँ और उदासी का एक गीत / पाब्लो नेरूदा / अशोक पाण्डे
}}
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<poem>
हर रोज़ खेलती हो तुम कायनात की रोशनी के साथ,
फूल और पानी में पहुँचती हो तुम ओ रहस्यपूर्ण आगंतुक ।
तुम इस सफ़ेद सिर से अधिक कुछ हो हर रोज़ जिसे मैं
अपने हाथों में थामे रहता हूँ फूलों के गुच्छे की तरह ।

तुम किसी और जैसी नहीं हो क्योंकि मैं तुम्हें प्यार करता हूँ ।
इजाज़त दो तुम्हें फैला दूँ पीली मालाओं के बीच
दक्षिण के सितारों के बीच कौन लिखता है धुएँ के शब्दों से तुम्हारा नाम
ओह ! इजाज़त दो तुम्हें याद करूँ, जैसी तुम यहाँ होने से पहले थीं ।

अचानक ही गुराँती है हवा और मेरी बन्द पड़ी खिड़की पर थपेड़े मारती
छायाओं और मछलियों से अटा जाल है आसमान
यहाँ सारी हवाएँ देर - सवेर मुक्त हो जाती हैं, सारी - की - सारी,
बारिश उतारती है अपने वस्त्र

चिड़ियाँ गुज़रती हैं, दूर जाती हुईं ।
हवा । हवा !
मैं बस मनुष्य की ताक़त से लड़ सकता हूँ
तूफ़ान घुमाता है अन्धेरी पंक्तियों को
और उन तमाम नावों को खोल देता है
जो पिछली रात आकाश में बंधी हुई थीं ।

तुम यहाँ हो, उफ़ ! तुम दूर मत जाओ ।
मेरी आख़िरी रुलाई तक मुझे जवाब दोगी तुम
मुझसे लिपट जाओ जैसे कि तुम डरी हुई हो

तो भी, एक पल को, एक अजनबी परछाई तुम्हारी आँखों से होकर गुज़री,
अब, अब भी तुम मेरी नन्ही, तुम लाती हो मेरे लिए हनीसकल के फूल
और तुम्हारे स्तनों से उनकी महक आती है,
और जब हवा तितलियों का क़त्लेआम करती उदास बहती है
मैं तुम्हें प्यार करता हूँ और मेरी प्रसन्नता
तुम्हारे मुँह के आलूबुखारे में गड़ती है

कितनी यातना झेली होगी तुमने मेरी आदत डालने में,
मेरी जंगली, अकेली आत्मा, मेरा नाम जिसे सुनकर
सारे दूर भाग जाते हैं ।
कितनी ही बार हमने देखा सुबह के तारे को जलते —
हमारी आँखों को चूमते
और हमारे सिरों के ऊपर सलेटी आग की लपेट खुलती हुई घूमते पंखों में
मेरे शब्द तुम पर बरसे, तुम्हें सहलाते हुए ।
लम्बे समय तक मैंने सूरज में तपी, मोती जैसी
तुम्हारी देह को प्यार किया
मैं तो यहाँ तक सोचा किया कि तुम इस कायनात की मालकिन हो
मैं तुम्हारे लिए पहाड़ों से प्रसन्न फूल लेकर आऊँगा । ब्लूबैल,
गहरे हेजल और चुम्बनों की ग्रामीण टोकरियाँ ।

मैं चाहता हूँ —
तुम्हारे साथ वह करना जो वसन्त करता है चेरी के पेड़ों के साथ ।

'''अँग्रेज़ी से अनुवाद : अशोक पाण्डे'''
</poem>
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